कितनी बेबस तू पंछी है रे
कठिन डगर की पंथी है रे
तू किन पर प्रेम लुटायेगी
कृतघ्न यहाँ सब संगी है रे
चली चल तू बच जायेगी
आत्मसम्मान पर कितना ठोकर खायेगी
गिद्धों की इस नागरी में
तू कबतक जीवित रह पायेगी
ढूंढ लेना कोई ऐसा उपवन
दुर्जन कपटी पापी न हो जन
गिर जायेगा अब यह बरगद
हर क्षण कहता है मेरा मन
-मोo नूरुल नबी अंसारी
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